Sunday 1 February 2015

अध्यापक यशपाल सिंह जैतों राजकीय स्कूल के कला अध्यापक ने बिना बजट के स्कूलों और संस्थानों में बनाई पेंटिंग और स्टेच्यू

डबवाली

राजकीय स्कूलों में कला अध्यापक अपनी रूचि और छवि खोते जा रहे हैं वहीं सांवतखेड़ा के स्कूल में कला अध्यापक यशपाल सिंह सबसे अलग हैं। रविवार को शहर के राजकीय सीनियर सेकंडरी स्कूल के शताब्दी समारोह में शहीद भगत सिंह के जिस प्रतिमा का लोकार्पण किया गया वह कला अध्यापक ने अपनी डयूटी टाइम के बाद कार्य करते हुए तैयार की है। फाइबर मिश्रित सामग्री से बनी प्रतिमा को बनाने में उन्हें 3 माह का समय लगा है। जिसके लिए उन्होंने न निर्माण सामग्री का चार्ज लिया है और न ही किसी प्रकार का मेहनता लिया गया है। इतना ही नहीं यशपाल सिंह रोजाना डयूटी के दौरान अपने स्कूल में और डयूटी के  बाद किसी सार्वजनिक और सार्वजनिक स्थानों पर पेटिंग व अन्य कलाकृतियां तैयार करते हैं। इसके लिए उन्हें समय नहीं मिलता तो रात को उसकी संस्थान में ठहर जाते हैं जहां काम कर रहे हों।

      कला अध्यापक यशपाल सिंह पिछले 8 साल से अपनी नियुक्ति वाले सांवतखेड़ा के राजकीय मिडल स्कूल में पंचायत के सहयोग से लगातार पेंटिंग कार्य कर रहे हैं। उन्होंने सभी कमरों पर शहीदाें की पेंटिंग बना रखी है वहीं स्कूल में शहीद भगत सिंह की प्रतिमा स्थापित की है। साथ ही विभिन्न जीव जंतुओं की आकृति वाले डस्टबिन, सफाई संकेतक बनाए हैं जबकि अब हाथी का स्टेच्यू बनाया जा रहा है। सांवतखेड़ा स्कूल उनकी पेटिंग से सजाए जाने की बदौलत वर्ष 2013-14 में खंड व जिला स्तर पर स्कूल सौंदर्यकरण में प्रथम रहा है। ये जिले में एकमात्र स्कूल है जिसने दोनों स्थान एक ही सत्र में प्राप्त किए हैं। इस वर्ष उनकी पुरानी नियुक्ति के दौरान बनाई पेटिंग वाले पन्नीवाला मोरिका स्कूल को भी सौंदर्यकरण में ब्लाॅक स्तर पर प्रथम रहा है।

चोरमार गुरुद्वारा में बना चुके 16 पेंटिंग
इसके अलावा रात्रि के समय चोरमार गुरुद्वारा में ठहरकर पेटिंग बनाते हैं जहां अब तक 16 पेटिंग बना चुके हैं। जिन्हें देखने के लिए आमजन व जिला प्रशासन के लोग अक्सर स्कूल में आते हैं। उल्लेखनीय है इससे पहले उन्होंने ढाई वर्ष गांव ओढां, 7 वर्ष गांव केवल तथा 12 वर्ष तक पन्नीवाला मोरिका में नियुक्त रहे हैं। इससे उनकी नियुक्ति वाले सभी स्कूलों में विभिन्न प्रतिमाएं, पेंटिंग व क्ले मॉडल बनी हुई है जो सभी स्कूलों को दूसरों से अलग करते हैं।


जन्म से ही है कला प्रेम

यशपाल सिंह ने बताया कि उनका जन्म पंजाब के फरीदकोट जिले के जैतों मेें 1957 में हुआ और वे 7 बहनों के इकलौते  भाई हैं। बचपन से ही कला का प्रेम रहा है और प्रेप तक की पढ़ाई के दौरान भी कलाकृतियां बनाने में रूचि रखते थे। जिससे वर्ष 1977 से 79 तक उन्होंने गुड़गांव से आर्ट एंड क्राफट का कोर्स किया जबकि वर्ष में अध्यापक नियुक्त होने के बाद से लगातार समय समय पर चंडीगढ़ के प्राचीन कला केंद्र से फाइन आर्ट की ट्रेनिंग लेते हैं। जिसे रोजाना बच्चों काे सिखाने के साथ आमजन को भी कला के प्रति प्रेरित करते हैं।

कला अध्यापक यशपाल सिंह ने वर्ष 2014 में शिक्षा विभाग में प्रदेश स्तरीय सम्मान के लिए आवेदन किया था। जिसमें उन्हें ब्लॉक स्तर से जिला स्तर पर भेजा था और वहां प्रदेश स्तर के लिए भेजा जाना था लेकिन जिला प्रशासन ने उन्हें इसके लिए उचित नहीं मानते हुए इसे रदद कर दिया। जबकि अपने विषय में साधारण स्तर की उपलब्धियां प्राप्त करने वाले अध्याकों को शिक्षा विभाग प्रदेश स्तर पर सम्मान दे चुका है।

 मेरी नजर में कला एक संस्कृति है जिसके माध्यम से हम वह संदेश दे सकते हैं जो किसी ओर माध्यम से संभव नहीं है। इसलिए लुप्त हो रही इस कला को जिंदा रखना ही उनका मकसद है। किसी भी राजकीय स्कूल, संस्थान व संस्था को कला के लिए जरूरत हो वहां मेरी निशुल्क सेवाएं हमेशा उपलब्ध रहेगी। भले ही अकेला चल रहा हूं लेकिन ये कहूं कि जित्थे कला दे कद्रदान हैं, औत्थे कल्ला ही काफी हां।

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