Thursday 26 February 2015

पीछे छूट जाएंगी जीवन की सब रंगीनियां-- गरिमा ने खूब पढ़ाई लिखाई की मगर 24 वर्ष की उम्र में ही चुना वैराग्य का मार्ग
डबवाली।
जिस उम्र में लड़कियां भविष्य के सुनहरे सपने संजोती है, अपने होने वाले जीवन साथी व घर परिवार को लेकर चिंतित होती है। उस उम्र में शहर निवासी गरिमा जैन ने अच्छी शिक्षा ग्रहण करने के बावजूद भी जीवन के सभी रंगीनियों को छोड़कर अपने लिए वैराग्य का मार्ग चुना है। यह एक ऐसा मार्ग है जिसे अपनाने के बाद श्रृंगार, गहने, सुंदर कपडे, खान-पान व जीवन के सब रिश्ते नाते भी पीछे छूट जाएंगे। गरिमा जैन की उम्र मात्र 24 वर्ष है।  मूलत: गांव सावंतखेड़ा के निवासी हैं। 
डबवाली के इतिहास में पहली बार हो रहा है की कोई 24 वर्षीय लड़की वैराग्य का मार्ग चुन रही है वहीँ गरिमा जैन ने यह फैसला खुद लिया और वह खुद पोस्ट ग्रेजुएट करने के बाद भी जिन्दगी भर वैराग्य का मार्ग चुनने जा रही है 
वर्ष 1980 तक डबवाली में रहे व फिर संगरिया में कारोबार जमा लिया। बड़ी बहन चारू की शादी हो चुकी है व छोटा भाई हिमांशु बीसीए कर रहा है। गरिमा ने अंग्रेजी में एमए व एमबीए की पढ़ाई की है। इसके बावजूद मन में जीवन के प्रति वैराग्य आ गया है इसलिए जैन धर्म की दीक्षा लेकर साध्वी का चोला पहनने का फैंसला लेकर कठिन तपस्या भरा जीवन जीने का निर्णय लिया है। गरिमा जैन ने बताया कि उन्होंने बचपन में ही ठान लिया था कि वह शादी नहीं करेंगी और मदर टेरेसा के जीवन का अनुसरण करते हुए ताउम्र समाजसेवा करेंगी। वर्षों से परिवार जैन धर्म से जुड़ा हुआ है व इस दौरान जब जैन साध्वियों के सपंर्क में आई तो उनसे प्रभावित हुई।
 जब एकांत में बैठकर ध्यान करती तो समय का पता ही नहीं चलता। ऐसा लगता कि जैसे भगवान से बातें कर ली हैं। जब उन्होंने परिजनों को बताया कि वह जीवन के सभी सुखों को छोड़कर जैन साध्वी बनना चाहती हैं तो वे पहले तो कुछ नहीं बोले। बाद में वे उसे घुमाने के लिए मुंबई ले गए। दुनिया के कई रंग दिखाकर उसे मनाने की कोशिश की ताकि उसके मन से वैराग्य की भावना निकल जाए। गरिमा ने बताया कि परिजनों की खुशी के लिए वह खूब घूमी लेकिन ऐशो आराम व भौतिक सुख सुविधाएं देने वाले दुनियावी खिलौने उसके निर्णय को नहीं बदल पाए। इसके बाद परिजनों ने भी उसे वैरागी बनने की आज्ञा दे दी है।
 गरिमा जैन ने सभी के लिए संदेश देते हुए कहा कि यदि लोग नवंकार मंत्र के एक शब्द को भी अपने जीवन में उतार लें तो उनका जीवन बिना शास्त्रों को पढ़े ही सफल हो जाएगा। 

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